hridyanubhuti
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यादों का बसेरा है ”रूह” की गली में
जिस्म बौखलाया न ”रूह” ढूढ़ पाए..
यादों ने आगोश में जकड़ा इस तरह
है खुला आसमां,फिर भी न उड़ पाए…
यादों ने खुद को महकाया इस तरह
खुशबू मोगरे की, फीकी पड़ जाए…
यादों ने खुद को है बसाया इस तरह
शहर,गली,मुहल्ले,सब वीरानी पाए …
यादों को है बस यादों से वास्ता
न और कोई रिश्ता,वो समझ पाए…
यादों का मौसम बदलता हर पल
हो ख़ुशी या ग़म,ये नमी ले आए…
यादों का सिलसिला है सदियों की तरह
फिर भी इनका पता,न कोई ढूढ़ पाए…
यादों का ढीठपन बर्दाश्त भी नहीं
फिर भी यादों बिन,न कोई जी पाए…
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